भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपने अपने कान बंधकर रख लो, आंखें फोड़ लो
वक़्त के बेरहम मौसम से ही नाता जोड़ लो
अपने होठों पर सजा लो बर्फ़ की गहरीत हें
देश हित की भावना की धूप से मुंह मोड़ लो
इन दिनों जब बेचते फिरते है सब अपना ज़मीर1
तुम भी बेशर्मी के आगे हाथ अपने जोड़ लो
टहनियों के दर्द से आगाह2 होना है फि़ज़ूल3
अधखिली कलियां दमकते फूल फ़ौरन तोड़ लो
जिस्म की खुशबू सुगंधित आत्मायें ले उड़ीं
उड़ते गिध अब तुम भी जि़ंदा शव से रिश्ता जोड़ लो
1. अन्तरात्मा 2. अवगत 3. व्यर्थ।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपने अपने कान बंधकर रख लो, आंखें फोड़ लो
वक़्त के बेरहम मौसम से ही नाता जोड़ लो
अपने होठों पर सजा लो बर्फ़ की गहरीत हें
देश हित की भावना की धूप से मुंह मोड़ लो
इन दिनों जब बेचते फिरते है सब अपना ज़मीर1
तुम भी बेशर्मी के आगे हाथ अपने जोड़ लो
टहनियों के दर्द से आगाह2 होना है फि़ज़ूल3
अधखिली कलियां दमकते फूल फ़ौरन तोड़ लो
जिस्म की खुशबू सुगंधित आत्मायें ले उड़ीं
उड़ते गिध अब तुम भी जि़ंदा शव से रिश्ता जोड़ लो
1. अन्तरात्मा 2. अवगत 3. व्यर्थ।
</poem>