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घणी छोटी हूं.... / कृष्णा सिन्हा

No change in size, 04:50, 12 फ़रवरी 2014
{{KKCatKavita‎}}<poem>घणी छोटी हूं, माटी हूं म्हैं
जे राखोला थे पग म्हा पर
जद ई चरण धूळ ही थांकी हूं म्हंैम्हैं
घणी छोटी हूं....।
हवा ई जद ना चालै उण समै,
तो माटी में अस्यान धंस जाऊंला म्हंैम्हैं
बण थांकां पगां रा निसाण
सगळां नैं थांको गेलो ही दिखाऊंला म्हैं
घणी छोटी हूं....।</poem>
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