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10:10, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
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<poem>तुमने मुझे जो तोहफा-ए-गम दिए,
हिफाजत में इनकी, मैं टूटता चला गया!
मंजिले बहुत थीं इस जमाने में मगर
हर एक मंजिल में, तुझे ढूंढता चला गया!
रात में पहले नींद फिर नींद में ख्वाब
और ख्वाबों में तुझको ही ढूंढता चला गया!
रह गया एक तू ही ख्यालों में अब ,
जहाँ के साथ खुद को ही भूलता चला गया!
आँख को या अश्कों को कहूं बेवफा,
ये सवाल जिन्दगी से पूंछता चला गया!
तुमने मुझे जो तोहफा-ए-गम दिए,
हिफाजत में इनकी, मैं टूटता चला गया!
</poem>