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<poem>


मौला ख़ुश्क आँखें तर कर दे
झोली-झोली मोती भर दे

शहपर दे बाज़ू कटने पर
ऊँचा रहने वाला सर दे

अँखुए फिर से फूट रहे हैं
ज़ख़्मी डाली को ख़ंजर दे

आगज़नों के दिल को पानी
हम बेघर लोगों को घर दे

ख़ुशबू लुट जाती है सारी
रंग नहीं हमको पत्थर दे

मर जाएँगे बेतेशा हो
तेशा दे तो दस्ते-हुनर दे

तितली माँग रही है ख़ुश्बू
फूल दुआ करते हैं पर दे
</poem>