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|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
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<poem>
हमारी जिन्दगी के दिन,
बड़े संघर्ष के दिन हैं।
हमेशा काम करते हैं,
मगर कम दाम मिलते हैं।
प्रतिक्षण हम बुरे शासन--
बुरे शोषण से पिसते हैं!!
अपढ़, अज्ञान, अधिकारों से
वंचित हम कलपते हैं।
सड़क पर खूब चलते
पैर के जूते-से घिसते हैं।।
हमारी जिन्दगी के दिन,
हमारी ग्लानि के दिन हैं!!
हमारी जिन्दगी के दिन,<br>बड़े संघर्ष के दिन हैं।<br>हैं!हमेशा काम करते हैंन दाना एक मिलता है,<br>मगर कम दाम मिलते खलाये पेट फिरते हैं।<br>प्रतिक्षण हम बुरे शासन--<br>मुनाफाखोर की गोदामबुरे शोषण से पिसते हैं!!<br>के ताले न खुलते हैं।।अपढ़विकल, अज्ञानबेहाल, अधिकारों से<br>भूखे हमवंचित हम कलपते तड़पते औ' तरसते हैं।<br>सड़क पर खूब चलते<br>हमारे पेट का दानापैर के जूते-से घिसते हमें इनकार करते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन, <br>हमारी ग्लानि भूख के दिन हैं!!<br><br>
हमारी जिन्दगी के दिन, <br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>न दाना एक नहीं मिलता हैकहीं कपड़ा,<br>खलाये पेट फिरते लँगोटी हम पहनते हैं।<br>मुनाफाखोर की गोदाम<br>हमारी औरतों के ताले न खुलते तनउघारे ही झलकते हैं।।<br>विकल, बेहाल, भूखे हम<br>हजारों आदमी के शवतड़पते औ' कफन तक को तरसते हैं।<br>हमारे पेट का दाना<br>बिना ओढ़े हुए चदरा,हमें इनकार करते खुले मरघट को चलते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन, <br>हमारी भूख लाज के दिन हैं!!<br><br>
हमारी जिन्दगी के दिन, <br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>नहीं मिलता कहीं कपड़ाहमारे देश में अब भी,<br>लँगोटी हम पहनते विदेशी घात करते हैं।<br>हमारी औरतों के तन<br>बड़े राजे, महाराजे,उघारे ही झलकते हमें मोहताज करते हैं।।<br>हजारों आदमी हमें इंसान के शव<br>बदले,कफन तक को तरसते अधम सूकर समझते हैं।<br>बिना ओढ़े हुए चदरा,<br>गले में डालकर रस्सीखुले मरघट को चलते कुटिल कानून कसते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन,<br>हमारी लाज कैद के दिन हैं!!<br><br>
हमारी जिन्दगी के दिन,<br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>हमारे देश में अब भी,<br>विदेशी घात करते हैं।<br>बड़े राजे, महाराजे,<br>हमें मोहताज करते हैं।।<br>हमें इंसान के बदले,<br>अधम सूकर समझते हैं।<br>गले में डालकर रस्सी<br>कुटिल कानून कसते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन,<br>हमारी कैद के दिन हैं!!<br><br> हमारी जिन्दगी के दिन,<br>बड़े संघर्ष के दिन हैं!<br>इरादा कर चुके हैं हम,<br>प्रतिज्ञा आज करते हैं।<br>हिमालय और सागर में,<br>नया तूफान रचते हैं।।<br>गुलामी को मसल देंगे<br>न हत्यारों से डरते हैं।<br>हमें आजाद जीना है<br>इसी से आज मरते हैं।।<br>हमारी जिन्दगी के दिन,<br>हमारे होश के दिन हैं!!<br/poem>
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