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|रचनाकार=विपिन चौधरी
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|संग्रह=
}}
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<poem>
तुम गौर से नहीं देखोगे तो भी
विज्ञान अपना काम करता रहेगा,
पेड़ की पहली मोटाई हमारे पहले प्रेम का पता देगी
उसके घेरे के आस-पास धूसर स्मृतियों के दुमहले छल्ले सिमट जायेंगे
प्राणी विज्ञान, प्रेम को हल्के में ले
उसे महज दो-तीन हफ्तों की रासायनिक प्रक्रिया में ही निपटा देगा
दर्शन शास्त्र का प्रेम शाश्वत वेगवान धारा बन बरसों बहेगा पर
कोई विधा अपनी सीमा से बाहर नहीं आना चाहेगी
विज्ञान और दर्शन कुछ भी कहें
प्रेम का प्रेत कहता है कि
इनसान अपने कद जितना प्रेम करता है
या कर सकता है
न उससे कम न ज्यादा
अपनी कद से कई उंगल ऊपर उठ कर बसने वालों का प्रेम
पल में हवा हो गया
एक करीबी लड़की ने तीन साल में दो प्रेम निपटा दिए
अब चौथा प्रेम तलाश रही है
डर है उसे
कहीं वह अपनी उम्र की उन लड़कियों में अकेली न पड़ जाए
जो हर शाम अपने नए-नवेले बॉय फ्रेंड्स के साथ टहलने जाती हैं
और पहले से भी अधूरी हो कर लौटती हैं
</poem>
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तुम गौर से नहीं देखोगे तो भी
विज्ञान अपना काम करता रहेगा,
पेड़ की पहली मोटाई हमारे पहले प्रेम का पता देगी
उसके घेरे के आस-पास धूसर स्मृतियों के दुमहले छल्ले सिमट जायेंगे
प्राणी विज्ञान, प्रेम को हल्के में ले
उसे महज दो-तीन हफ्तों की रासायनिक प्रक्रिया में ही निपटा देगा
दर्शन शास्त्र का प्रेम शाश्वत वेगवान धारा बन बरसों बहेगा पर
कोई विधा अपनी सीमा से बाहर नहीं आना चाहेगी
विज्ञान और दर्शन कुछ भी कहें
प्रेम का प्रेत कहता है कि
इनसान अपने कद जितना प्रेम करता है
या कर सकता है
न उससे कम न ज्यादा
अपनी कद से कई उंगल ऊपर उठ कर बसने वालों का प्रेम
पल में हवा हो गया
एक करीबी लड़की ने तीन साल में दो प्रेम निपटा दिए
अब चौथा प्रेम तलाश रही है
डर है उसे
कहीं वह अपनी उम्र की उन लड़कियों में अकेली न पड़ जाए
जो हर शाम अपने नए-नवेले बॉय फ्रेंड्स के साथ टहलने जाती हैं
और पहले से भी अधूरी हो कर लौटती हैं
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