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{{KKRachna
|रचनाकार=नंददास
}}{{KKAnthologyGarmi}}[[Category:भ्रमर गीत]]{{KKCatPad}}<poeMpoem>''' ऊधव को उपदेश सुनो ब्रज -नागरी . रूप सील लावण्य सबै गुन आगरी . प्रेम-धुजा रस रुपिनी, उपजावत सुख पुंज . सुन्दरस्याम विलासिनी, नववृन्दावन कुंज . सुनो ब्रज -नागरी .
कहन स्याम संदेस एक मैं तुम पे आयौ .कहन समै संकेत कहूँ अवसर नहिं पायौ सोचत हीं मन में रह्यों,कब पाऊँ इक ठाऊँकहि संदेस नंदलाल को, बहुरि मधुपुरी जाऊँसुनो ब्रज-नागरी
कोऊ कहे रे मधुप ग्यान उलटो ले आयौ
मुक्त परे जे फेरि तिन्हें पुनि करम बतायो
वेड उपनिषद सर जे मोहन गुन गहि लेत
तिनके आतम सुद्ध करि,फिरि फिरि संथा देत
जोग चटसार मैं
सुनत सखा के बैन नैन भरि आये दोउविवस प्रेम आवेस रही नाहीं सुधि कोऊरोम रोम प्रति गोपिका,ह्वै रहि सांवर गातकल्प तरोरुह सांवरो ब्रजवनिता भईं पातउलहि अंग अंग तें .
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