भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर
}}{{KKCatPad}}<poem> औरे भांति कुंजन में गुंजरत भौर भीर , :::औरे भांति बौरन के झौरन के ह्वै गए. कहै ‘पदमाकर’ सु औरे भांति गलियानि , :::छलिया छबीले छैल औरे छबि छ्वै गए .
औरे भांति बिहँग समाज में आवाज होति,