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|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem> किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी <br>मुझ को एहसास दिला दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी<br><br>
मेरे रुकने से मेरी साँसे भी रुक जायेंगी <br>फ़ासले और बड़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी <br><br>
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़मानेवालो <br>अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी <br><br>
चलती राहों में यूँ ही आँख लगी है 'फ़ाकिर' <br>भीड़ लोगों की हटा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी <br><br/poem>
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