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|रचनाकार=ओम नागर
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}}
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<Poem>सूरज उग
ढळग्यों/आंथग्यो
जाणै कतनी बेर।
पोवणी की नांई
तपबा लाग’गी धरणी
जेठ की भरा-भर दुपैरी मं
भर्रणाया बादळां की नांई
जी गैल पै
रूस’र चली’गी छी तू।
ऊं गैल पै
मन की रीती छांगळ ल्यां
ऊंभौ छूं हाल बी
थंई उडीकता।
</Poem>
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<Poem>सूरज उग
ढळग्यों/आंथग्यो
जाणै कतनी बेर।
पोवणी की नांई
तपबा लाग’गी धरणी
जेठ की भरा-भर दुपैरी मं
भर्रणाया बादळां की नांई
जी गैल पै
रूस’र चली’गी छी तू।
ऊं गैल पै
मन की रीती छांगळ ल्यां
ऊंभौ छूं हाल बी
थंई उडीकता।
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