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Kavita Kosh से
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
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यहाँ तो चलती हैं छुरिया ज़ुबाँ से पहले <br>ये मीर अनीस की, आतिश की गुफ़्तगू तो नहीं <br><br>
चमक रहा है जो दामन पे दोनों फ़िरक़ों के <br>बग़ौर देखो ये इस्लाम का लहू तो नहीं<br><br/poem>