भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मील |संग्रह=मंडाण / नीरज ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मील
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>उठ झांझरकै जद मां झरमर चाकी झोवती,
बीं झरमर री लोरी ऊपरां
म्हानैं नींद भलेरी आवती।
कठै गया वै झरमर बोलणा
अर कठै गया वै चाकी पीसणा!
घाल बिलोवणो जद मां झगड़-मगड़ बिलोवती,
वा झगड़-मगड़ री बोली
म्हारै हिवड़ै घी-सो घालती।
कठै गया वै झगड़-मगड़ बोलणा
अर कठै गया वै बिलोवणा, बिलोवणी!

बैठ रसोवड़ा मांय जद मां ढब-ढब खाटो औळती,
वा ढब-ढब री बोली म्हारै कानां मिसरी घोळती।
कठै गया वै ढब-ढब बोलणा
अर कठै गया वै खाटा ओलणा!
सांझ पड़्यां जद मां पट-पट सोगरा बणावती
वा पट-पट री वाणी म्हानैं घणी ई चोखी लागती
कठै गया वै पट-पट बोलणा
अर कठै गया वै बाजरी रा सोगरा!
कठै गया वै बोलणा.....!</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,484
edits