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लाय / संजय आचार्य वरुण

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|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<Poem>हर काची-पाकी
काया रै भांडै
वै लगा दी है-
एक लाय।
उणसूं
वंारै घरां मांय
हो रैयो है
अवस ही चानणो
पण हर काया लागी
उण लाय सूं
राख बणतो जा रैयो है
उण काया मांय
रैवण वाळो मिनख।</poem>
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