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Kavita Kosh से
मीठी-मीठी लग़ज़िशें वो प्यारी-प्यारी ग़लतियाँ
अब वो तौबा कर रहे हैं मस्जिदों में बैठकर
जबकि बूढ़ी हो चुकी है वो कुंवारी गलतियाँ
बारहा होकर ठोकर लगी गिरते रहे पड़ते रहे
फिर भी हम सुधरे नहीं फिर भी हैं जारी गलतियाँ
गलतियाँ भी ख़ूबियों में अब गिनी जाने लगी
इस नई तहजीब ने ऐसे संवारी ग़लतियाँ
वक़्त है अब भी सुधर जाओ ‘अना’ वरना सुनोतुमको अब मँहगी पड़ेंगी ये तुम्हारी गलतियाँ </poem>
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