भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
शाखाएँ, टहनियाँ<br>
हिलाओ, झकझोरो<br>
जिन्हे गिरना हो गिर जायेंजाएँ<br>::जाएँ जाएँ<br><br>
पत्र-पुष्प जितने भी चाहो<br>
अभी ले जाओ<br>
जिसे चाहो, उसे दो<br><br>
एक अनुरोध मेरा मान लो<br>
सुरभि हमारी यह<br>
::हमें बड़ी प्यारी है<br>इसको सँभालकर सँभाल कर जहाँ जाना<br>::ले जाना<br><br>
इसे <br> तुम्हे सौंपता हूँ।<br><br>