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<poem>
निरधनको धनि राम । हमारो०॥ध्रु०॥
खान न खर्चत चोर न लूटत । साथे आवत काम ॥ह०॥१॥
दिन दिन होत सवाई दीढी । खरचत को नहीं दाम ॥ह०॥२॥
सूरदास प्रभु मुखमों आवत । और रसको नही काम हमारो०॥३॥
</poem>
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निरधनको धनि राम । हमारो०॥ध्रु०॥
खान न खर्चत चोर न लूटत । साथे आवत काम ॥ह०॥१॥
दिन दिन होत सवाई दीढी । खरचत को नहीं दाम ॥ह०॥२॥
सूरदास प्रभु मुखमों आवत । और रसको नही काम हमारो०॥३॥
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