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|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>भीतर का कोलाहल
बाहर की आपाधापी
अपनों की दूरियां
सत्ता की मारामारी
नष्ट हो रहा मौन
पीछे छूट गया मनन

महंगा हो गया समय
सस्ती मनुष्यता
अधकचरी अहिंसा
घर तो बाजार बन गया
भीतर की समझ
लगा रही गोता
क्या पाएगी मोती
या खाली हाथ
नजर झुकाए लौट आएगी।
</poem>
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