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{{KKAarti|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> जय हनुमत बीरा, बाबा जय हनुमत बीरा।<BR>संकट मोचन स्वामी आप हो रणधीरा॥ जय..<BR>.पवन पुत्र अंजनि सुत महिमा अति भारी।<BR>दु:ख दारिद्र मिटावो संकट सब हारी॥ जय..<BR>.बाल समय में तुमने रवि को भक्ष लियो।<BR>देवन अस्तुति कीन्ही तब प्रभु छाडि़ दियो॥ जय..<BR>.कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई।<BR>बालि मराय कपीसहिं गद्दी दिलवाई॥ जय..<BR>.लंक जारि, लाये सिय की सुधि, बानर हर्षाये।<BR>कारज कठिन सुधारे रघुबर मन भाये॥ जय..<BR>.शक्ति लगी लक्ष्मण के भारी सोच भयो।<BR>लाय संजीवन बूटी दु:ख सब दूर कियो॥ जय..<BR>.ले पाताल अहिरावन जबहीं पैठि गयो।<BR>ताहि मारि प्रभु लाये जय जयकार भयो॥ जय..<BR>.घाटा, सालसर में शोभित दर्शन छवि न्यारी।<BR>मंगल और शनीचर मेला लगता है भारी॥ जय..<BR>.श्रीबालाशाहजी की आरती जो कोई नर गावे।<BR>कहत इन्द्र हर्षित मनवांछित फल पावे॥ जय...</poem>