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{{KKAarti|रचनाकार=}}{{KKCatKavitaKKDharmikRachna}}{{KKAnthologyKrushnKKCatArti}}<poem> भगवान नटवर जी की जय-जय गिरिधारी प्रभु, जय-जय गिरिधारी।<BR>दानव-दल बलिहारी, गो-द्विज हितकारी॥ जय ..<BR>
जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन-धारी।<BR>वंशीधर बनवारी, ब्रज-जन प्रियकारी॥ जय ..<BR>
गणिका-गीध- अजामिल-गजपति-भयहारी।<BR>आरत-आरति-हारी, जय मंगल-कारी॥ जय ..<BR>
गोपालक, गीतेश्वर, द्रौपदी-दु:खहारी।<BR>शबर-सुता-सुखकारी, गौतम-तिय तारी॥ जय ..<BR>
जन-प्रहलाद-प्रमोदक, नरहरि-तनुधारी।<BR>जन-मन-रजनकारी, दिति-सुत-संहारी॥ जय ..<BR>
टिट्टिभ-सुत संरक्षक, रक्षक मंझारी।<BR>पाण्डु-सुवन-शुभकारी, कौरव-मद-हारी॥ जय ..<BR>
मन्मथ-मन्मथ मोहन, मुरली-रव-कारी।<BR>वृन्दाविपिन-बिहारी, यमुना-तट-चारी॥ जय ..<BR>
अघ-बक-बकी उधारक, तृणावर्त-तारी।<BR>विधि-सुरपति मदहारी, कंस-मुक्तिकारी॥ जय ..<BR>
शेष, महेश, सरस्वती गुण गावत हारी।<BR>कल कीरति विस्तारी भक्त-भीति-हारी॥ जय ..<BR>
नारायण शरणागत, अति अघ अघहारी।<BR>पद-रज पावनकारी चाहत चितहारी॥ जय ...</poem>