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Kavita Kosh से
वही त्रिलोचन है, वह-जिस के तन पर गंदे<br>
कपड़े हैं। कपड़े भी कैसे- फटे लटे हैं<br>यह भी फैशन फ़ैशन है, फैशन फ़ैशन से कटे कटे हैं.हैं।<br>कौन कह सकेगा इसका यह जीवन चंदे<br>पर अवलंबित है. अवलम्बित् है। चलना तो देखो इसका-<br>
उठा हुआ सिर, चौड़ी छाती, लम्बी बाहें,<br>
सधे कदमस कदम, तेजी, वे टेढ़ी मेढ़ी राहें<br>
मानो डर से सिकुड़ रही हैं, किस का किस का<br>
ध्यान इस समय खींच रहा है. है। कौन बताए,<br>क्या हलचल है इस के रुंघे रुंधे रुंधाए जी में<br>कभी नहीं देखा है इसको चलते धीमे.धीमे।<br>धुन का पक्का है, जो चेते वही चिताए.चिताए।<br>
जीवन इसका जो कुछ है पथ पर बिखरा है,<br>
तप तप कर ही भट्ठी में सोना निखरा है.है।
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