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{{KKBhaktiKavya|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> जय कश्यप नन्दन, ऊँ जय अदिति नन्दन।<BR>द्दिभुवन तिमिर निकंदन, भक्त हृदय चन्दन॥ जय ..<BR>.
सप्त अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।<BR>दु:खहारी, सुखकारी, मानस मलहारी॥ जय..<BR>.
सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।<BR>अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ जय ..<BR>.
सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।<BR>विश्व विलोचन मोचन, भव-बंधन भारी॥ जय ..<BR>.
कमल समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।<BR>सेवत सहज हरत अति, मनसिज संतापा॥ जय ..<BR>.
नेत्र व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा हारी।<BR>वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ जय ..<BR>.
सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।<BR>हर अज्ञान मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥ जय ... </poem>