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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
देखो मम्मी देखो पापा,
बस्ता हमसे उठ न पाता|
हम बच्चों का दर्द आप सब,
लोगों को क्यों समझ न आता|

आठ सेर का वज़न हमारा,
पर बस्ता तो दस का है माँ|
इसको कंधे पर ले जाना,
नहीं हमारे बस का है माँ|

हम बच्चों पर कहर इस तरह,
क्यों दुनियाँ वाले ढाते हैं|
कष्ट हमें है कितना भारी,
क्यों न लोग समझ पाते हैं|

अभी खेलने खाने के दिन,
किंतु गधे सा हमको लादा|
सड़क किनारे खड़ा गधा भी,
हमें जुनियर गधा बुलाता|

हम छोटे छोटे बच्चे हैं,
हमको हंसने मुस्कराने दो|
बिना किताबों के ही हमको,
कुछ दिन तो शाला जाने दो|</poem>
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