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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
हमारी माँ अगर होती, हमारे साथ में पापा|

फटकने दुख नहीं देती ,हमारे पास में पापा||

सुबह उठकर हमें वह दूध ,हँस हँस कर पिलाती थी|

डबल रोटी या बिस्कुट ,साथ में ,हमको खिलाती थी|

अगर होती सुबह से ही ,कभी की उठ चुकी होती|

हमें रहने नहीं देती, कभी उपवास में पापा|



हमारे स्वप्न जो होते, उन्हें साकार करती थी|

किसी भी और माता से,अधिक वह प्यार करती थी|

नहीं अब साथ में तो यह,जहां बेकार लगता है|

नहीं अब कुछ बचा बाकी,हमारे हाथ में पापा|



सदा सोने से पहले लोरियाँ ,हमको सुनाती थी|

इशारे से कभी चंदा, कभी तारे दिखाती थी|

हमें जब है जरूरत है,प्यार के बादल बरसने की|

पड़ा है किस तरह सूखा भरी बरसात में पापा|



हमें यूं छोड़कर जाने की,उसको क्या जरूरत थी|

उसी के साथ जीवन भर, हमें रहने की हसरत थी|

हमें लगता किसी ने,यूं नज़र हमको लगाई है|

छुपा बैठा हमारे घर,हमारी घात में पापा|
</poem>
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