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हम क्रांतिकारी नहीं थे<br>हम सिर्फ अस्थिर थे<br>और इस अस्थिरता में कई बार<br>कुछ नाजुक मौक़ों पर <br>जो हमें कहीं से कहीं पहुंचा सकते थे<br>अराजक हो जाते थे<br>लोग जो क्रांति के बारे में किताबें पढ़ते रहते थे<br>हमें क्रांतिकारी मान लेते थे<br>जबकि हम क्रांतिकारी नहीं थे<br>हम सिर्फ अस्थिर थे<br><br>
हम बहुत ऊपर<br>और बहुत नीचे<br>लगातार आते-जाते रहते थे<br>हम तेज़ भागते थे अपने आगे-आगे<br>और कई बार हम पीछे छूट जाते थे<br><br>
कई-कई दिन अपने से पीछे <br>घिसटते रहते थे<br><br>
कोई भी चीज़ हमें देर तक <br>आकर्षित नहीं करती थी<br><br>
हम बहुत तेज़ी से आकर चिपकते थे<br>और अगले ही पल गालियां देते हुए<br>अगली तरफ भाग लेते थे<br><br>
ज्ञान हमें कन्विंस नहीं कर पाता था<br>और किताबें खुलने से पहले <br>भुरभुरा जाती थीं<br><br>
हम अपना दुख कह नहीं पाते थे<br>क्योंकि वो हमें झूठ लगता था<br><br>
हम अपना सुख सह नहीं पाते थे<br>क्योंकि उसके लिए हमारे भीतर कोई जगह नहीं थी<br>और वो हमें बहुत भारी लगता था<br><br>
हमारे आस-पास बहुत सारी ठोस चीज़ें थीं<br>लेकिन हमें लगता रहता था<br>किसी भी क्षण हम हवा होकर उनके बीच से निकल जाएंगे<br>और फिर किसी के हाथ नहीं आएंगे<br>
हम बहुत अकेले थे<br>और भीड़ में स्तब्ध खड़े रहते थे<br>लोग हमें छूने से डरते थे<br>जैसेकि जैसे कि हम रेत का खम्भा हों<br>हम रेत का खम्भा नहीं थे<br>लेकिन लोहे की लाट भी नहीं थे<br>हम सिर्फ ये नहीं समझ पाए थे<br>कि भीड़ से बाहर रहते हुए भी भीड़ में कैसे रहा जाता है<br>जबकि ज़्यादातर चीज़े इसी पर निर्भर थीं<br><br>
कोई शिक्षा संस्थान हमें चालाकी नहीं सिखा पाया था<br>मार्च की गुनगुनी धूप हमें पागल कर देती थी<br>और हम सबकुछ भूल जाते थे<br><br>
हम प्यार करना चाहते थे <br>लेकिन कर नहीं पाते थे<br>हम लिंगभेद से परेशान थे <br>और संबंधभेद से भी<br><br>
समर्पित योनियां और आक्रामक शिश्न<br>हमारी वासना की नैतिकता को कचौटते थे<br>और हम बलात्कार को अनंतकाल के लिए स्थगित कर देते थे<br><br>
हम अपने ही शरीर में एक शिश्न और एक योनि साथ-साथ चाहते थे<br>ताकि हमें भाषा का सहारा ना लेना पड़े<br><br>
हमारे पास बहुत कम शब्द रह गए थे<br>जिन पर हमें यकीन था<br>और उनका इस्तेमाल हम कभी-कभी करते थे<br><br>
हम गूंगे हो जाने को तैयार थे<br>पर उसकी भी गुंजाइश नहीं थी<br>हर बात का जवाब हमें देना पड़ता था<br>और हर सवाल हमसे पूछा जाता था<br><br>
हर जगह, हर समय एक युद्ध चल रहा था<br>हम लड़ना नहीं चाहते थे<br>लेकिन भागना भी हमारे वश में नहीं था<br><br>
हम हारे, हम थके, हम पीछे हटे, हमने सारे हथियार उन्हें सौंप दिए<br>बाक़ायदा उनसे पिटे भी<br>लेकिन हमें जाने नहीं दिया गया<br><br>
हमने परम्परागत आपत्तियों को मौक़ा देना छोड़ दिया<br>परम्परागत पैंतरों को उत्तेजित करना छोड़ दिया<br>इस तरह हम फालतू हुए<br><br>
युद्ध के लिए बेकार<br>तब उन्हें यकीन हुआ कि हम लड़ नहीं सकते<br><br>
वे एक-दूसरे को लड़ने की सुविधा देते हुए लड़ रहे थे<br>उनके बीच एक समझौता था<br>जो अनन्त से चला आ रहा था<br>हमने उसे तोड़ा<br>इस तरह युद्ध क्षेत्र के बीच हम बचे<br><br>
निस्सन्देह हमारा युद्ध नहीं था वह<br>और हम शुरू से इसे जानते थे<br><br>
जो भी हमसे भिड़ा छटपटाते हुए मरा<br>क्योंकि वो लड़ने का आदी हो चला था<br>और हम बैठे सिगरेट पीते रहते थे<br><br>
हम दफ्तरों से, घरों से, पिताओं और<br>पत्नियों से भागकर<br>सड़कों पर चले आते थे<br>जो सूनी होती थीं<br>और बहुत सारे लोग उन पर आवाज़ किए बगैर रेंगते रहते थे<br><br>
हर सड़क से हमारा कोई न कोई रिश्ता निकल आता था<br>और हम कम-से-कम एक दिन उसके नाम कर देते थे<br><br>
हम मौत से भाग रहे थे<br>एक दिन हमें अचानक मालूम हुआ<br>कि वो हमारे पीछे-पीछे चल रही थी<br>हमारा हर क़दम मौत के आगे था<br>और उसका हर क़दम हमारे पीछे<br><br>
हम जीवन-भर एक भी क़दम अपनी इच्छा से नहीं चले<br>हमें कोई पीछे से धक्का देता था<br>हमें सिर्फ़ भय लगता था<br>वहीं हमारी इच्छा थी<br><br>
हम क्रांतिकारी नहीं थे<br>हम सिर्फ अस्थिर थे<br>और स्थगित....<br><br>
ये हमने मरने के बाद जाना कि<br>वो स्थगन ही <br>
दरअसल उस समय की सबसे बड़ी क्रांति था