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Kavita Kosh से
और कितनी ही कविताएं सो गयी तकिये से चिपक कर
जलती रही कविता धीरे धीरे
जैसे दूध के साथ उफन गए कितने अहसास भीगे से
और तुम कहते हो
उस घरेलु घरेलू स्त्री को कविता की समझ नहीं!
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