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|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सुबह की आस किसी लम्हे जो घट जाती है ज़िन्दगी सहम के ख़्वाबों से लिपट जाती है
सुबह की आस किसी लम्हे जो घट जाती शाम ढलते ही तेरा दर्द चमक उठता है <br>ज़िन्दगी सहम के ख़्वाबों से लिपट तीरगी दूर तलक रात की छट जाती है <br><br>
शाम ढलते ही तेरा दर्द चमक उठता है <br>बर्फ़ सीनों की न पिघले तो यही रूद-ए-हयात तीरगी दूर तलक रात जू-ए-कम-आब की छट मानिंद सिमट जाती है <br><br>
बर्फ़ सीनों की न पिघले तो यही रूद-ए-हयात <br>आहटें कौन सी ख़्वाबों में बसी है जाने जू-ए-कम-आब की मानिंद सिमट आज भी रात गये नींद उचट जाती है <br><br>
आहटें कौन सी ख़्वाबों में बसी है जाने <br>आज भी रात गये नींद उचट जाती है <br><br> हाँ ख़बर-दार कि इक लग़्ज़िश-ए-पा से भी कभी <br>सारी तारीख़ की रफ़्तार पलट जाती है <br><br/poem>