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Kavita Kosh से
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गुज़री है रात कैसे सबसे कहेंगी आँखें
शरमा के ख़ुद से ख़ुद ही यारों झुकेंगी आँखें
तन्हाइयों में उससे बातें करेंगी आँखें
अश्के लहू से आखिर कब तक रचेंगी आँखें
सुख-दुःख हैं इसके पहलू ये ज़िन्दगी है सिक्काहालात जिन्दगी ज़िन्दगी के खुद ख़ुद ही करेंगी कहेंगी आँखें
तू भी 'रक़ीब' सो जा होने को है सवेरा
वरना हथेली दिन भर मलती रहेंगी आँखें
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