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पीठ कोरे पिता-2 / पीयूष दईया

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<poem>
शंख फूंकता रहा हमें
.--रूह का क़ातिल

अनाम
अन्यत्र से
एक स्वप्न की तरह ऐन्द्रजालिक

वह अपना रहस्य बनाये रखती है
.--मृत्यु

प्रकृति का ऋण है
</poem>
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