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व्यर्थ / काका हाथरसी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=काका हाथरसी|अनुवादक=|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी}}{{KKCatKavita}}<poem>काका या संसार में, व्यर्थ भैंस अरु गाय ।  
मिल्क पाउडर डालकर पी लिपटन की चाय ॥
 पी लिपटन की चाय साहबी ठाठ बनाओ ।  
सिंगल रोटी छोड़ डबल रोटी तुम खाओ ॥
 कहँ ‘काका' कविराय, पैंट के घुस जा अंदर ।  
देशी बाना छोड़ बनों अँग्रेजी बन्दर ॥
जप-तप-तीरथ व्यर्थ हैं, व्यर्थ यज्ञ औ योग ।  
करज़ा लेकर खाइये नितप्रति मोहन भोग ॥
 नितप्रति मोहन भोग, करो काया की पूजा ।  
आत्मयज्ञ से बढ़कर यज्ञ नहीं है दूजा ॥
 कहँ ‘काका' कविराय, नाम कुछ रोशन कर जा ।  मरना तो निश्चित है करज़ा लेकर मर जा ॥जा॥<poem>
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