भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इक सितारा टिमटिमाता रहा सारी रात
वो सुलाता रहा और जगाता रहा
पहलू में कभी, कभी आसमान पर
वह उनींदे की लोरी सुनाता रहा।
इक ...
रूप उसका समझ में क्या आए कभी
रोशनी उसकी पल में आये-जाये कभी
खुशबू उसकी और उसके पैरहन
सपनों से नींद में आता जाता रहा।
इक ...
रंग उसका और उसकी आवाज क्या
लाऊं आखर में मैं उसके अंदाज क्या
रू-ब-रू उसके आंख खुलती नहीं
भोर तक उस पे नजरें टिकाता रहा।
इक ...
पलकों पे शबनम की बूंदें हैं अब
और रंगत फलक की श्वेताभ है
सूर्य आएगा इनको भी ले जाएगा
मानी क्या मैं रोता या गाता रहा।
इक ...