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Kavita Kosh से
सपनों के आँचल वाली ! देवताओं की ईर्ष्या, मनुष्यों की आशा,
राक्षसों की विपत्ति ! अमीरों की अनदेखी, ग़रीबों की मसीहा !
स्वस्ति, स्वस्ति तेरा आना !
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