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|रचनाकार=शशि पुरवार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
हर मौसम में खिल जाता है नीम की ही ये माया है
राही को जो छाया देता नीम का ही वो साया है।
बिन पैसे की खान है ये तो तोहफ़ा है इक क़ुदरत का,
महिमा देखी नीम की जब से आम भी कुछ बौराया है ।
जब से नीम है घर में आया, जीने की मंशा देता,
मोल गुणों का ही होता है नीम ने ही बतलाया है।
कड़वा स्वाद नीम का लेकिन गुणकारी तेवर इसके,
हर रेशा औषध है इससे रोग भी अब घबराया है।
निंबोली का रस पीने से तन के सारे रोग मिटें,
मन मोहक छवि ऐसी जिसने लाभ बहुत पहुँचाया है
गाँव की वो गलियाँ भी छूटीं, छूटा घर का आँगन भी,
शहर में फैला देख प्रदूषण नीम भी अब मुरझाया है।
</poem>
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हर मौसम में खिल जाता है नीम की ही ये माया है
राही को जो छाया देता नीम का ही वो साया है।
बिन पैसे की खान है ये तो तोहफ़ा है इक क़ुदरत का,
महिमा देखी नीम की जब से आम भी कुछ बौराया है ।
जब से नीम है घर में आया, जीने की मंशा देता,
मोल गुणों का ही होता है नीम ने ही बतलाया है।
कड़वा स्वाद नीम का लेकिन गुणकारी तेवर इसके,
हर रेशा औषध है इससे रोग भी अब घबराया है।
निंबोली का रस पीने से तन के सारे रोग मिटें,
मन मोहक छवि ऐसी जिसने लाभ बहुत पहुँचाया है
गाँव की वो गलियाँ भी छूटीं, छूटा घर का आँगन भी,
शहर में फैला देख प्रदूषण नीम भी अब मुरझाया है।
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