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Kavita Kosh से
रही योजनों दूर उदासी जिस नारी के मन से
जिसका मन जीता न गया मन से, कुेर के धन से
जिसकी हल्की-स्मृति पर त्रिभुवन न्यौछावर है
उसका हृदय चुराने वाला निश्चय यही सुन रहे हैं
नूपुर खोल,कंचुकी-भीतर डाले, कंगन कस कर