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तुम्हारा प्यार / किशोर काबरा

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|संग्रह = मै एक दर्पण हूँ / किशोर काबरा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मोर पंखी आँख में<br>दुबका हुआ<br>शिशु सा तुम्हारा प्यार<br>कुछ ऐसा हठीला हो गया है<br>दृष्टि का आँचल पकड़कर<br>मचलता है<br>बून्द बन कर उछलता है<br>फर्श गीला हो गया है<br>तर्क से<br>कटता कहाँ<br>बस, झेलता है<br>दूब के मानिन्द<br>दिन दिन फैलता है<br>कुछ गँठीला<br>कुछ कँटीला<br>हो गया प्यार<br>
कुछ ऐसा हठीला हो गया है।
</poem>
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