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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आंख्यां में अणूता
सुपना भर’र
आभैं में उडणैं री सोचूं
इधकी अबखायां
जुग री जकी
उणां सूं जुुद्ध
म्हैं तेवड लूं
भळै उतार ल्याऊं
कोई नवी गंगा
धरती माथै
भगीरथ ज्यूं
आं ग्यान-विग्यान रा
पगोथियां रै ताण
धरती नैं बणावण सारू
विसव गांव।
म्हूं देऊं
इण सारू रचायौडै इण होम में
म्हारी पांती री आहूति
कांई ठाह
आ धरती बण जावै सुरग।
</poem>
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<poem>
आंख्यां में अणूता
सुपना भर’र
आभैं में उडणैं री सोचूं
इधकी अबखायां
जुग री जकी
उणां सूं जुुद्ध
म्हैं तेवड लूं
भळै उतार ल्याऊं
कोई नवी गंगा
धरती माथै
भगीरथ ज्यूं
आं ग्यान-विग्यान रा
पगोथियां रै ताण
धरती नैं बणावण सारू
विसव गांव।
म्हूं देऊं
इण सारू रचायौडै इण होम में
म्हारी पांती री आहूति
कांई ठाह
आ धरती बण जावै सुरग।
</poem>