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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
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<poem>
म्हूं
होवणौं नीं चावूं
भेडां भेळौ भेड
मरणौं नीं चावूं
अैक ओळखाणहीण मौत
म्हूं
करणौं नीं चावूं
भीड भैळो अैक और सिर
पच्छै ई पण
मेल दिया
छतीस पांवडा
किणी गतागम में
डूब्यौड़ै
वीं ई’ज पगडांडी
रूळियारपणैं में।
</poem>
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