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Kavita Kosh से
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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
अबै आंख्यां ने
देखण खातर
दरकार नीं है
किणी चीज वास्त री।
जद भी उण ने
कीं मन भावणौ
नीं दीखसी तो
बा जाणें है
के उण रै आप रै मांय भी तो
वस्योड़ी है एक दुनिया
उण रौ आप रौ संसार।
वा उण ने ही’ज देखैला
बा जाणै के
रूं रूं खड़ौ कर देवण आळौ हुवै
खुद में उतर’र
खुद ने देखणौ।
</poem>