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Kavita Kosh से
लोप हुय जासी
घर री गै’री षांतिशांति
इण विकराळ हवा रै आणै सूं
जकी जीसा रै
मिन्दर में रोज
पाठ रणै करणै सूं थरपीजी है।
ओजूं तांई
भचीड़ै है हवा