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कीं चितराम / संजय आचार्य वरुण

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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
कदे कदे
जीवन में आवै
इण भांत रा दिन
जद लागै
के जाणें
राम जी ले रह्या हुवै
सीता माँ री
अगन परीक्षा
बार-बार।
 
बन में तिरसौ मिरग
पाणी सोधतौ सोधतौ
निढ़ाळ होय
इसौ पड़ै
के फेर बो
कदे नीं सोधै पाणी।
 
भोरान भोर
मजूरी खातर
निसर्यौ मिनख
सिंज्या ने पूठौ आवै
जूत्यां ने आधी कर’र
अर सोय जावै
पाणी रौ गुटकौ पीर’र
दुजै दिन रो आस पर।
झूंपड़ी में
मांचै पर पड्यौ
ताव सूं बळतौ डील
दवायां ने
अडीकतौ अडीकतौ
छोड़ जावै
ओ नष्वर संसार।
 
कच्ची बस्ती में
लीरिया पूरिया बांध’र
बणायोड़ौ एक टापरौ
खाडा कोचरां सूं निसरतौ
चूलड़ी रौ धूंवौ
अर, काठीजियोड़ै टीण री
छजवाळ माथै पड़ियै
रेडियै सूं बाजतौ गीत
‘इक बंगला बने न्यारा’।
</poem>
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