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|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
बाबू बनकर मुन्नी बैठी,
ऐनक लगा शान में ऐंठी।
गुड़िया को झट लगी पढ़ाने,
रोब मास्टरी का दिखलाने।
तब तक उसकी अम्मा आई,
लीला देख बहुत झल्लाई।|
हाथ पकड़ कर पीटा उसको,
खींचा और घसीटा उसको।
लेकिन मुन्नी समझ न पाई,
क्यों इतना अम्मा झल्लाई।
बोली आँखों में भर पानी,
बाबू जी करते शैतानी।
ऐनक रोज लगाते हैं वे,
मुझको रोज पढ़ाते हैं वे।
उनको कभी न कुछ कहती हो,
देख देख भी चुप रहती हो।
मुझको ही क्यों पीटा पकड़ा,
लेकर एक बड़ा सा लकड़ा।
सुन बेटी की बातें भोली,
माँ की बुझी क्रोध की होली।
प्यार किया चुमकारा उसको,
कभी नहीं फिर मारा उसको।
</poem>
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
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बाबू बनकर मुन्नी बैठी,
ऐनक लगा शान में ऐंठी।
गुड़िया को झट लगी पढ़ाने,
रोब मास्टरी का दिखलाने।
तब तक उसकी अम्मा आई,
लीला देख बहुत झल्लाई।|
हाथ पकड़ कर पीटा उसको,
खींचा और घसीटा उसको।
लेकिन मुन्नी समझ न पाई,
क्यों इतना अम्मा झल्लाई।
बोली आँखों में भर पानी,
बाबू जी करते शैतानी।
ऐनक रोज लगाते हैं वे,
मुझको रोज पढ़ाते हैं वे।
उनको कभी न कुछ कहती हो,
देख देख भी चुप रहती हो।
मुझको ही क्यों पीटा पकड़ा,
लेकर एक बड़ा सा लकड़ा।
सुन बेटी की बातें भोली,
माँ की बुझी क्रोध की होली।
प्यार किया चुमकारा उसको,
कभी नहीं फिर मारा उसको।
</poem>