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बाल लीला / श्रीनाथ सिंह

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<poem>
हैं बस हिलती डुलती पुतली।
अभी बोलते बोली तुतली।।
पर ये दोनों आँखें प्यारी।
सदा मांगती दुनिया सारी।।
इनकी अजब अजीब कहानी।
चाहे पत्थर हो या पानी।।
रखते जग में सब से नाता।
कोई माता कोई भ्राता।।
कभी चोर बनते छिप जाते
जू जू बन कर कभी डराते।।
या कोयल बन कू ! कू ! गाते।
तरह तरह के वेष बनाते।।
जो लखते उस पर ललचाते।
आ जा, आ जा, उसे बुलाते।।
आता अगर न तो झल्लाते।
बड़े बड़े आँसू टपकाते।।
जिसको इतना रो कर पाते।
छिन में भूल उसी को जाते।।
किसी और हित मुँह कर गीला।
बड़ी निराली इनकी लीला।।
</poem>