भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
प्रूफ़रीड किया है
}}
समय क्षण-भर थमा सा :
फिर तौल तोल डैने
उड़ गया पंछी क्षितिज की ओर :
मद्धिम लालिमा ढरकी अलक्षित ।अलक्षित।
तिरोहित हो चली ही थी कि सहसा
फूट तारे ने कहा : रे समय,
::तू क्या थक गया ?
रात का संगीत फिर
तिरने लगा आकाश में ।में।
Anonymous user