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{{KKRachna
|रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी
|अनुवादक=|संग्रह=पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी}} <poem>का सिंगार ओहि बरनौं, राजा । ओहिक सिंगार ओहि पै छाजा ॥प्रथम सीस कस्तूरी केसा । बलि बासुकि, का और नरेसा ॥भौंर केस, वह मालति रानी । बिसहर लुरे लेहिं अरघानी ॥बेनी छोरि झार जौं बारा । सरग पतार होइ अँधियारा ॥कोंपर कुटिल केस नग कारे । लहरन्हि भरे भुअंग बैसारे ॥बेधे जनों मलयगिरि बासा । सीस चढे लोटहिं चहँ पासा ॥घुँघरवार अलकै विषभरी । सँकरैं पेम चहैं गिउ परी ॥
बरनौं माँग सीस उपराहीं । सेंदुर अबहिं चढा जेहि नाहीं ॥
बिनु सेंदुर अस जानहु दीआ । उजियर पंथ रैनि महँ कीआ ॥
कंचन रेख कसौटी कसी । जनु घन महँ दामिनि परगसी ॥
सरु-किरिन जनु गगन बिसेखी । जमुना माँह सुरसती देखी ॥
खाँडै धार रुहिर नु भरा । करवत लेइ बेनी पर धरा ॥
तेहि पर पूरि धरे जो मोती । जमुना माँझ गंग कै सोती ॥
करवत तपा लेहिं होइ चूरू । मकु सो रुहिर लेइ देइ सेंदूरू ॥
(1) सँकरैं = श्रृंखला, जंजीर । फँदवार = फंद में फँसानेवाले । बलि = निछावर हैं । लूरे = लुढँते या लहरते हुए । अरघानि = महँक, आघ्राण । अस्टकुरी = अष्टकुलनाग (ये हैं - वासुकि, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंखचूड, महापद्म, धनंजय )।
(2) उपराहीं = ऊपर । रुहिर = रुधिर । करवत = कर-पत्र, कुछ लोग त्रिवेणी संगम पर अपना शरीर आरे से चिरवाते थे, इसी को करवट लेन कहते थे । वहाँ एक आरा इसके लिए रखा रहता था । काशी में भी एक स्थान था जिसे काशी करवट कहते हैं । तपा = तपस्वी । सोहाग =(सौभाग्य), (ख) सोहागा ।
(3) ओती = उतनी । अत्र = अस्त्र । हए = हतें, मारा
(4) सहुँ - सामने । हुत =था । बेझ = बेध्य, बेझा निसाना । (5) उलथहिं - उछलते हैं । भवाँ =फेरा,चक्कर । अपसवाँ चहहिं = जाना चाहते हैं, उडकर भागना चाहते हैं (अपस्रवण )। (6) उलटि....पल माहा = बडे बडे अडनेवाले या स्थिर रहनेवाले पल भर में उलट जाते हैं ।फिरावहीं = चक्कर देते हैं ।अनी =सेना । बनावरिं = बाणावलि, तीरों की पंक्ति ।साखी = वृक्ष । साखी = साक्ष्य, गवाही । रन = अरण्य । (7) जोगु देउँ = जोड मिलाउँ। समता में रखूँ । पँवारी = लोहारों का एक औजार जिससे लोहे में छेद करते हैं । हिरकाइ लेइ = पास सटा ले । (8) हीरा लेइ...उजियारा = दाँतों की स्वेत और अधरों की अरुण ज्योति के प्रसार से जगत में उजाला होना, कहकर कवि ने उषा या अरुणोदय का बडा सुन्दर गूढ संकेत रखा है । मजीठ = बहुत गहरा मजीठ के रंगका लालधार = खडी रेखा । (9) चौक =आगे के चार दाँत । पाहन = पत्थर, हीरा । झरक्कि उठे ।झलक गए । अनेक प्रकार के रत्नों के रूप में हो गए । झरक्कि उठे = झलक गए । अनेकप्रकार के रत्नों के रूप में हो गए । (10) अमर = अमरकोश । भासवती = भास्वती नामकज्योतिष का ग्रंथ । सुजनन्ह = सुजानों या चतुरों को । (11) साँधे = साने, गूँधे, खरौरा = खाँड के लड्डू । खँडौरा ।घुँघची =गुँजा । करमुँहा = काले मुँहवाला (12) लौकहिं = चमकती है, दिखाई पडती है । खूँट = कान का एक गहना । खूँट = कोने । खुंभी = कान का एक गहना । कचपचिया =कृतिका नक्षत्र जिसमें बहुत से तारे एक गुच्छे में दिखाई पडते हैं । गोहने = साथ में, सेवा में । (13) कंबु = शंख । रीसी =ईर्ष्या (उत्पन्न करनेवाली ) अथवा `करोसी'कैसी, जैसी; समान । कुंदै = खराद । पुछार =मोर । साँच =साँचा । भाई =फिराई हुई खराद पर घुमाई हुई । (14) गाभ = नरम कल्ला । हथोरी = हथेली । तात =गरम । टाड = बाँह पर पहनने का एक गहना । बेडिन = नाचने गानेवाली एक जाति । पौंनार = पद्मनाल =कमल का डंठल । ठाँवहिं ठाँव..निंत = कमलनाल में काँटे से होते हैं और वह सदा पानी के ऊपर उठा रहता है । (15) कचोर =कटोरे । कूँदे = खरादे हुए । मोन = मोना, पिटारा, डिब्बा । बारी = (क) कन्या (ख) बगीचा । (16) अरइल = प्रयाग में वह स्थान जहाँ जमुना गंगा से मिलती है ।करवत = आरा । करसी = उपले या कंडे की आग जिसमें शरीर सिझाना बडा तप समझा जाता था , (17) करा = कला से, अपने तेज से। कारे = साँप । पन्नग पंकज....बईठ = सर्प के सिर या कमल पर बैठै खंजन को देखने से राज्य मिलता है, ऐसा ज्योतिष में लिखा है । (18) पुहुमि = पृथिवी बसा =बरट, भिड, बरैं । परिहँस = ईर्ष्या, डाह । मानहुँ नाल.....गए = कमल के नाल को तोडने पर दोनों खंडों के बीच महीन महीन सूत लगे रह जाते हैंतागा =सूत । छुद्र-घंटिका = घुँघरूदार करधनी । (19) भँव = घूमता है, चक्कर खाता है । खोजू = खोज, खुर का पडा हुआ चिन्ह । हिवंचल = हिमाचल । तीवह = स्त्री । समुद्र लहरि = लहरिया कपडा । झोंपा = गुच्छा । अरघनि = आघ्राण, महँक ।
(20) फेरि =उलटकर । लाए = लगाए ।
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