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{{KKRachna
|रचनाकार=मलिक मोहम्मद जायसी
|अनुवादक=|संग्रह=पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी}} <poem>एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । कोइ जाही जूही सेवती ॥कोई सोनजरद कोइ केसर । कोइ सिंगार-हार नागेसर ॥कोइ कूजा सदबर्ग चमेली । कोई कदम सुरस रस-बेली ॥
खेलत मानसरोवर गईं । जाइ पाल पर ठाढी भईं ॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली । पदमावति सौं कहहिं सहेली
ए रानी ! मन देखु बिचारी । एहि नैहर रहना दिन चारी ॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू । खेलि लेहु जो खेलहु आजु ॥
पुनि सासुर हम गवनब काली । कित हम, कित यह सरवर-पाली ॥
कित आवन पुनि अपने हाथा । कित मिलि कै खेलब एक साथा ॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं । दारुन ससुर न निसरै देहीं ॥
(1) केत = केतकी । करना = एक फूल । कूजा = सफेद जंगली गुलाब ।
(2) पाल =बाँध, भीटा, किनारा ।
(3) चाह = खबर । डेल = बहेलिए का डला ।
(4) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा । मुकलाई = खोलकर । मकु =कदाचित् ।
(5) करिल = काले । बिसहर = बिषधर, साँप, करी कली । कोंप कोंपल । उनंत = झुकती हुई ।
(6) साखी = निर्णय-कर्ता, पंच । वाद मेलि कै = बाजी लगाकर । रउताई = रावत या स्वामी होने का भाव, ठकुराई । फुलायल = फुलेल ।
(8) चाह = खबर, आहट
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