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बारीबंटै / निशान्त

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<poem>
अब थानै
कीं नीं करणों
बारी री
उडीक रै सिवा

क्यूंकै घड़ दिया है
थे लोगां
हालात इस्या कै
सत्ता आ पड़ै
थारी झोळी में
बारीबंटै

हां ! बियां जे थे चाओ
बजा सको कांख
कदे कदास
विरोधी री
करणी पर।
</poem>
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