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बचन नीं / निशान्त

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<poem>
किणीं महापुरूष रा
बचन सुण्या-
दोगाचिंतीं छोड़‘र
निडर हुवण रै
बारै में

पण हुयो नी गयौ
क्यूं कै
म्हनै निगै नीं आयो
दूर-दूर तांई
महापुरूष रै
बचना में
ढळ्योड़ो आदमी।
</poem>
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