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<poem>
देखण नै काळ में
गांव रा हाल
आयो हूँ
गांव में

खेत पड़्या है खाली
अेक-दो मिनखां रै सिवा
गुवाड़ ई है सूनो
बाड़ा जका पसुवां सूं
भर्योड़ा निजर आंवता
भभाका मारै

पण कुंवै रो
पणघट जरूर भर्यो है
क्यूंकै धरती रो भीतर
अजे तांई हर्यो है

रान नै अेक घर में
लुगायां
गावै सुवटिया
सोचूं-
जीवण-राग नै
मार कोनी सकै
काळ ई।
</poem>
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