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बजार / निशान्त

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<poem>
नै’री गावां री
बात तो अळगी ही

उण आप रो जाळ
बिरानी गावां तक ई
(जठै ज्यादातर काळ पड़ै)
बिछा दियो

कैयो-म्हैं थानै
अगाड़ी ले ज्याऊँला
नुवों च्यानणों
दिखाऊंला

लोग बीं री बातां में
इस्या आया कै
थोड़ी-भौत
जकीह रोही री हरियाळी
अर चै’रां री
चिकणाई ही
बा ई गमा बैठ्या।
</poem>
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