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चर-चाँचर छल भरल-पुरल, सगरो बाढ़िक छल जोरजतहु शस्य - श्यामला बाघ छल चानी पिटल उजोरकिछु जन नाव उपर चढ़ि ‘पिकनिक’ हेतु झिल्हेरक खेलचलइछ गपसप रंग-विरंगक, रचइत रुचि कत मेलकखनहु शिक्षा कला समीक्षा, कखनहु रस संगीतशिल्प ज्ञान विज्ञान, खने, फिल्मी चर्चा कत रीतकखनहु खेल विविध मेलक, खन राजनीति केर वादचलइत छल नाव क गति संगहि कत नागरिक विवादसभ छल मगन तरुन शिक्षित - दीक्षित जीवन रस पूरकेवल मूढ़ मलाह न बुझइत गूढ़ बात, छल दूरखेपइत लय करुआरि धार दिस कखनहु गगन निहारध्यान एक टा छलै, कोना लय जायब नौका पारसहसा नजरि पड़ल ओकरा पर, टोकल संगीतज्ञगबन जनै छ? नहि उत्तर सुनि कहल, केहन तोँ अज्ञपूछल कवि, कविता बुझइत छह? ओ मुह रहल निहारिराष्ट्रसंघ केर अध्यक्षक नामक क्यो कयल पुछारिऔरो कते प्रश्न सभ पूछल, उत्तर एक नकारसभ कहि उठल, व्यर्थ तोहर जीवन निष्फल संसारबकबक तकइत मुँह सबहक मलाह चुप खेबइछ नावपूनि सभ अपन रंग रस मातल, गप करइत भरि तावसहसा गपसप रोकि कयल हल्ला मल्लाह अधीरऔ बाबू? हेलय जनइत छी की? थिति अछि गंभीर‘नहि नहि, की थिक बात?’ कहल ओ, ‘नाव डुबल मझधारगीत न कवित, हिसाब-किताब न एतय लगाओत पारसुनतहिँ सभक दिमागी गुन कपूर बनि उड़ि कत गेलगोहराओल, तोँ पार लगाबह मुइलहुँ सवहिँ बलेल
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