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|रचनाकार=हनीफ़ साग़र
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>बात बनती नहीं ऐसे हालात में मैं भी जज़्बातमें, तुम भी जज़्बात में
बात बनती नहीं ऐसे हालात में <br>कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म मैं भी जज़्बातमें, तुम भी जज़्बात उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात में <br><br>
कैसे सहता है मिलके बिछडने मुफ़लिसी और वादा किसी यार का ग़म <br>उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात खोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात में<br><br>
मुफ़लिसी और वादा किसी यार का<br>जब भी होती है बारिश कही ख़ून कीखोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में<br><br>
जब भी होती है बारिश कही ख़ून की<br>मुझको किस्मत ने इसके सिवा क्या दियाभीगता हूं सदा मैं ही बरसात कुछ लकीरें बढा दी मेरे हाथ में<br><br>
मुझको किस्मत ने इसके सिवा ज़िक्र दुनिया का था, आपको क्या दिया<br>हुआकुछ लकीरें बढा दी मेरे हाथ आप गुम हो गए किन ख़यालात में<br><br>
ज़िक्र दुनिया का था, आपको क्या हुआ<br>आप गुम हो गए किन ख़यालात में<br><br> दिल में उठते हुए वसवसों के सिवा<br>कौन आता है `साग़र' सियह रात में<br><br/poem>
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